नई माँ की उलझन ......

                 

                  
                                                              नई माँ की उलझन 
                                        
              
किसी भी स्त्री' के लिए पहली बार माँ बनने का अनुभव ही अनोखा होता है।  नौ महीने के तकलीफ का एक अद्भुत मजा अद्भुत अहसास और इंतजार एक नन्हे फ़रिश्ते का जो इस दुनिया में आने को तैयार है। 
अपने और अपने बच्चे के लिए न जाने कितना सपना सजाती , देखती और उस सपने में जीती है। 
   
                    नौ महीने के बाद असहनीय दर्द के साथ .....नार्मल डिलीवरी,.... पर एक अनजानी ख़ुशी और राहत भी की मेरा बच्चा सही सलामत इस दुनिया में है और वैसे भी उस मासूम चेहरे को देखकर दुनिया का हर दर्द ख़त्म हो जाता है। 
     
                           
                लेकिन माँ बनने के बाद बहुत से ऐसे तकलीफ होती है जो सिर्फ एक माँ समझ सकती है ,और इसके बारे में हर पति और पत्नी को जानना चाहिए , जिससे एक माँ इस अवसाद से जल्दी निकल सके।  पति को इसलिए यह सब जानना , समझना चाहिए क्योकि पति के अलावा इस परिस्थिति में कोई दूसरा और इस दर्द नहीं समझ सकता और न ही काम आ सकता है।  अफ़सोस की बात यह है की इस समस्या के बारे में औरतो को ही पता नहीं होता है, जोकि बाद में बहुत बड़ी परेशानी खड़ी  कर देती है। क्योकि इस बारे में एक साधारण महिला न किसी से  सुनी होती है और न ही कोई बताने वाला होता है। थोड़ा बहुत समझ होता है वो भी अधूरा। और अधूरा हमेशा तकलीफ ही देता है। 

                                                  औरत का दुखी मह्सूस करना ,अपने आप को व्यर्थ समझना ,हर छोटी छोटी बातो पर रोना ,  ये सब डिलीवरी के बाद हार्मोन की मात्रा ,शरीर  में बदलते  रहने के कारण  होती  है जो की बड़ी सामान्य सी बात है।  इस बदलाव को बेबी ब्लूज कहा जाता है। इस अवसाद का कारण गर्भावस्था के दौरान होने वाले हार्मोन्स  में बदलाव और लगातार अकेलेपन का होना  जिम्मेदार है।  
                  यह बदलाव या यु कहे की यह अवसाद की भावना अंदर से खोखला कर  देती है।  कुछ महिलाओँ में यह स्थिति कुछ समय के लिए  होती है तो कुछ में लम्बे समय तक के लिए बनी रहती है , और कुछ औरतो को  इस अवसाद के बारे में पता भी नहीं  होता। की इस तरह की कोई समस्या होती भी है और अधिकतर अशिक्षित महिलाओ, गावो और पिछले इलाको में ज्यादा होती है। या उस परिवार में जहा पारस्परिक मेल मिलाप या बातचीत का अभाव होता है। 
 
                                         जानकारी के अनुसार लगभग 80 % महिलाओ में अवसाद के लक्षण दिखाई देते है ,ये बच्चे के जन्म के बाद एक साल केअंदर , यह लक्षण ज्यादा प्रभाव शील और कभी भी दिखाई पड़ते है। इस अवसाद से निकलने के लिए पति और परिवार का पूर्ण सहयोग मिलना चाहिए जिससे वह जीवन में जल्द जल्द से वापस आ सके। नहीं तो यह समस्या बहुत लम्बे समय तक हो सकती है, और यदि गर्भावस्था के दौरान परिवार व  पति का  पूर्ण प्यार और सहयोग प्राप्त हो तो शायद यह समस्या हो भी ना। 

            इसके साथ कई माँ को अपने बच्चे के प्रति चिंता बहुत बढ़ जाती , जो की स्वाभाविक भी है। और उसे हमेशा उसके लिए चिंता होने लगती है जिससे वह चाहती है की बच्चा व माँ के बीच में कोई न हो उसका पति भी नहीं। पति अगर थोड़ी  लापरवाही करे बच्चे को लेकर तो  माँ चिढ़  जाती है जैसे बच्चे को गोद में लेने में ,या इस प्रकार के कोई भी लापरवाही। 
                             जो की अवसाद का ही लक्षण है बच्चे को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित रहने लगती है। दिन भर बच्चे  को अपने आँखों के सामने रखना ,उसी के बारे मे सोचना ,उसको लेकर हर छोटी छोटी चीज का ख्याल रखना। 
                 माँ व बच्चे के लिए  परिवार , खासकर पति, को हर जरुरत को समझकर उसका साथ देना चाहिए जो माँ को इस स्थिति से जल्दी निकल सकते है.
   
        डिलीवरी के बाद दो तरह के डिप्रेशन होते है-   1 प्रारंभिक या बेबी ब्लूज,    2 - देर तक रहने वाला पोस्मार्टम डिप्रेशन। 
   80 % महिलाओ में जल्द समाप्त  होने वाला डिप्रेशन होता है बेबी ब्लूज , तथा 10 -16 %  महिलाओ में यह एक या दो हफ्तों में नहीं लगभग  वह 1 वर्ष तक भी डिप्रेशन में रह सकती है। या ज्यादा भी ....... 
 
गर्भावस्था के दौरान दो हार्मोन्स जैसे एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रान  की मात्रा ज्यादा होती है और डिलीवरी के बाद इस  कि मात्रा  अचानक से गिर जाती है। जो बच्चे के जन्म के 3 दिन बाद अपने आप संतुलित हो जाती है ,ये अचानक से हार्मोन्स की गिरावट माँ के शरीर में हार्मोनल संतुलन को असंतुलित कर देता है , जिससे महिलाये स्वाभाविक तौर पर डिप्रेशन का शिकार हो  जाती है। 

        पोस्टमार्टम डिप्रेशन में 1000 में से एक महिला गुजरती है इसके कुछ लक्षण- नींद न आना , भूख कम लगना ,पार्टनर से दूर होना ,लगातार दुखी रहना , चिड़चिड़ाहट या बैचेनी , बार बार रोना , अधिक चिंता व डर सताना , अपने आप को बेकार समझना।  आत्महत्या का विचार आना आदि । मुख्यतः जिन महिलाओ को परिवार से कम सहायता मिलती है उनमे यह डिप्रेशन हो सकता  है।  

                             और में यह कह सकती हूँ  की यह अवसाद बहुत महिलाओ को झेलना पड़ता है।  इससे निकलना मुश्किल नहीं है।  परिवार, और पति के सहयोग तथा डॉक्टर के नियमित परामर्श से इस अवसाद से निजात मिल सकती है। 
                     


                                                                                                                               वेनु राजेश  वर्मा

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